बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्यसरल प्रश्नोत्तर समूह
|
0 5 पाठक हैं |
बीए सेमेस्टर-1 हिन्दी काव्य
अध्याय - 2
प्रारंभिक हिन्दी की विशेषताएँ एवं हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय
प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
अथवा
आर्य भाषा का वर्गीकरण करते हुए प्राचीन आर्य भाषा का संक्षिप्त परिचय दीजिए?
उत्तर -
हिन्दी की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
विश्व में लगभग तीन हजार भाषाएँ प्रचलित है, जिनमें से कई भाषाओं का मूल स्रोत एक ही है। ध्वनि शब्द समूह और व्याकरणगत तुलनात्मक अध्ययन विश्लेषण के आधार पर परस्पर संबद्ध भाषाओं की खोज करके विद्वानों ने संसार की भाषाओं को सात परिवारों में विभाजित किया है। इनमें क्षेत्र विस्तार तथा बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से 'भारोपीय परिवार सबसे बड़ा है। भारत से लेकर यूरोप तक विस्तृत होने के कारण इसे भारोपीय नाम दिया गया है। इसी भाषा परिवार से अधिकांश भारतीय. ईरानी और यूरोपीय भाषाओं का विकास हुआ है। इसे ही आर्य परिवार कहा जाता है। हिन्दी की ऐतिहासिक यात्रा में इसके उद्भव के प्राचीन सूत्र भारोपीय परिवार से जुड़ते हैं।
आर्य भाषाओं के बोलने वालों के पूर्वज किसी युग में एक ही स्थान पर रहते थे। कालान्तर में इनके अनेक समूह विभिन्न क्षेत्रों में फैल गये और इस क्रम में उनकी एक शाखा भारत में तथा दूसरी, शाखा यूरोप चली गयी। 1870 ई. में अस्कोली ने इस विभाजन क्रम का प्रतिपादन करते हुए एक निष्कर्ष निकाला कि पश्चिम में जाने वाले समूह में 'क' के स्थान पर पूर्व की ओर जाने वाले समूह ने 'श' या 'स', का उच्चारण बनाये रखा है। इसी आधार पर फान ब्रेडके नामक विद्वान ने एक समूह को शतम् वर्ग और दूसरे को केन्टुम वर्ग कहा है। शतम् वर्ग के अन्तर्गत भारत, ईरानी उपपरिवार आता है। इस उपपरिवार की जो शाखा भारत में बसी उससे भारतीय आर्य भाषाओं का विकास हुआ। हिन्दी भाषा का विकास भारतीय आर्य भाषा के तृतीय चरण में आधुनिक भारतीय भाषाओं के साथ हुआ है। इस वर्गीकरण को अधोलिखित तालिका के आधार पर समझा जा सकता है -
भारोपीय परिवार | |||
शतम् वर्ग | केन्टुम वर्ग | ||
भारतीय आर्य भाषा | दरदी (कश्मीरी) | ईरानी | |
प्राचीन भारतीय भाषा (वैदिक संस्कृत) |
|||
मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा (पालि, प्राकृत, अपभ्रंश) |
|||
आधुनिक भारतीय आर्य भाषा (गुजराती, सिंधी, मराठी, पंजाबी, हिन्दी, असमी, बंगाली उड़िया) |
हिन्दी भाषा का विकास भारतीय आर्य भाषा के तृतीय चरण में आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के उदय के साथ हुआ है, अतः हिन्दी भाषा के विकास क्रम का अवलोकन भारतीय आर्य भाषाओं के विकास के साथ ही किया जा सकता है। सामान्यतः यह धारणा बनी हुई है कि संस्कृत सभी भारतीय आर्य भाषाओं की जननी है। वस्तुतः संस्कृत का प्रारम्भ वेदों से हुआ है, जिसका संस्कार हो जाने के कारण उसे संस्कृत कहा जाने लगा, अतः हिन्दी का इतिहास वैदिक काल से प्रारम्भ होता है। वैदिक काल से ही इसका साहित्य मिलने लगता है, जिसके आधार पर भाषाओं का ऐतिहासिक विकास-क्रम निर्धारित किया जाता है। भारतीय आर्य भाषा को तीन कालों में विभाजित किया जा सकता है -
1- प्राचीन भारतीय आर्य भाषा - (वैदिक संस्कृत तथा लौकिक संस्कृत 500 ई. पू. तक).
2- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषा - (पालि, प्राकृत, अपभ्रंश - 500 ई. पू. से 1000 ई. तक).
3- आधुनिक भारतीय आर्य भाषा - (हिन्दी और हिन्दीत्तर आर्य भाषायें 1000 ई. से अब तक)।
1- प्राचीन भारतीय आर्य भाषा - प्राचीन भारतीय आर्य भाषा का विकास 2400 ई. पू. से माना है। आर्यों के आगमन के पूर्व भारत में अनेक आर्य जातियाँ विद्यमान थीं जिनकी भाषाएँ भारत में प्रचलित थीं। इन आर्य जातियों मे द्रविड़, आग्नेय, निग्रो, किरात आदि जातियाँ प्रमुख हैं। किरात पहाड़ी जातियाँ थी। ये शांतिप्रिय थे, अतः आर्यों के आगमन के साथ ही वे आर्यों के सहयोगी बन गये। भारतीय आर्य भाषा पर उनकी संस्कृति एवं भाषा का व्यापक प्रभाव पड़ा। आर्य संस्कृति में यक्ष, गन्धर्व, किन्नर आदि जातियों का वैशिष्ट्य इसी कारण बना हुआ है। द्रविड़ की भाषाओं का प्राचीन भारतीय आर्य भाषा पर पर्याप्त प्रभाव पड़ा। सामान्यतया भारतीय आर्य भाषाओं में 'ट वर्गीय' ध्वनियाँ, अनुकरणात्मक शब्दावली, प्रत्ययों एवं समासों की योजना, संयुक्त क्रियाएँ, अनुकर विभक्ति के स्थान पर परसंगों का प्रयोग, आदि द्रविड़ प्रभाव से विकसित हुए हैं। इस प्रकार प्राचीन भारतीय आर्य भाषा का विकास आर्यों एवं द्रविड़ों तथा अन्य भारतीय मूल के निवासियों के पारस्परिक आदान-प्रदान से हुआ। प्राचीन भारतीय आर्य भाषा के अन्तर्गत भाषा के दो रूप मिलते हैं - वैदिक भाषा तथा लौकिक भाषा।
(क) वैदिक भाषा - वैदिक भाषा ही मूल प्राचीन भारतीय आर्य भाषा है। वैदिक काल में आये आर्यों का मूल ग्रन्थ ऋग्वेद है, अतः ऋग्वेद की भाषा भारतीय आर्यों की प्राचीनतम भाषा का उदाहरण है। इस भाषा के अन्य नाम प्राचीन संस्कृत भी है। यह चारों वेदों, ब्राह्मण ग्रन्थों, अरण्यकों एवं उपनिषदों की भाषा है। यह भाषा स्वर प्रधान तथा श्लिष्ट योगात्मक होने के कारण अत्यन्त जटिल मानी जाती है। वैदिक भाषा के साहित्य के पर्याप्त विकसित हो जाने के पश्चात् भाषा को व्यवस्थित करने के लिए व्याकरण की रचना हुई। वैदिक भाषा मूलतः होने के कारण पर्याप्त अव्यवास्थित थी। उसका व्याकरणिक संस्कार हो जाने के कारण उसका नाम संस्कृत पड़ा। भाषा का प्रथम संस्कार पाणिनि ने किया। हिन्दी जिस भाषा धारा के विशिष्ट दैशिक और कालिक रूप का नाम है। भारत में इसका प्राचीनतम रूप संस्कृत है, अतः पाणिनि के युग से ही संस्कृत का विकास माना जाता है। इस प्रकार वैदिक भाषा ही मूल भारतीय आर्य-भाषा है।
(ख) लौकिक संस्कृत - लौकिक संस्कृत वैदिक संस्कृत के परिवर्तित रूपों से विकसित है। इसे क्लैसिक संस्कृत या देवभाषा भी कहा जाता है। लौकिक संस्कृत का विकास पाणिनि युग से माना जाता है। इस काल में संस्कृत बोलचाल की भाषा थी। लोग संस्कृत में बोलने गर्व की बात समझते थे। संस्कृत के अस्थिर रूपों की विविधता को एक रूपता प्रदान करने का श्रेय पाणिनि को है। पाणिनि ने संस्कृत भाषा का परिनिष्ठिकरण किया। इनका संस्कृत व्याकरण अष्टाध्यायी इसी प्रयास का प्रतिफल है। पाणिनि ने वैदिक भाषा में प्रचलित संज्ञा, सर्वनाम, विश्लेषण किया है कि वह जनभाषा बन गई। लौकिक संस्कृत में उच्चकोटि का साहित्य रचा गया है। संस्कृत का साहित्य संस्कृत में - उच्चकोटि का साहित्य रचा गया है। संस्कृत का साहित्य विश्वविख्यात है। पाणिनि, काव्यायन और पतंजलि को संस्कृत व्याकरण के मुनिवय की संज्ञा दी गयी। संस्कृत कालान्तर में भारतीय संस्कृति एवं साहित्य की मुख्य भाषा के रूप मे प्रतिष्ठित हुई तथा सामान्य बोलचाल में इसका व्यवहार 500 ई. पू. तक होता रहा, जबकि साहित्य का वर्चस्व अपभ्रंश युग तक विद्यमान रहा। वर्मन विद्वान श्लेगेज के अनुसार - "संसार की भाषाओं में कोई भाषा इतनी पूर्ण और उन्नत नहीं है, जितनी कि संस्कृत भाषा।'
विशेषताएँ - प्राचीन भारतीय आर्य भाषा की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं -
(1) भाषा श्लिष्ट योगात्मक थी।
(2) लौकिक संस्कृत में ध्वनियों में सरलीकरण की प्रवृत्ति आई। कुछ शब्दों के अर्थों में भी परिवर्तन हो गया था।
(3) वैदिक में रूप- रचना अत्यन्त जटिल थी। पाणिनि ने एक आदर्श रूप स्वीकार कर जन भाषा बनाई। लौकिक संस्कृत में नियबद्धता दिखाई देती है।
(4) वैदिक संस्कृत में संगीतात्मक स्वराघात था, लौकिक संस्कृत में बलात्मक स्वराघात विकसित हुआ।
(5) इसमें तीन लिंग और तीन वचन थे।
(6) वाक्य में शब्द का स्थान निश्चित नहीं था।
(7) वैदिक संस्कृत में शब्दों के रूप तीन लिंग, तीन वचन तथा आठ कारक के आधार पर बनते थे।
(8) लौकिक संस्कृत में आर्योत्तर प्रभाव के कारण नये शब्दों का आगमन हुआ।
|
- प्रश्न- भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी साहित्य पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के इतिहास लेखन की परम्परा में शुक्लोत्तर इतिहासकारों का योगदान बताइए।
- प्रश्न- प्राचीन आर्य भाषा का परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- मध्यकालीन भारतीय आर्य भाषाओं का संक्षिप्त परिचय देते हुए, इनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए?
- प्रश्न- आधुनिक आर्य भाषा का परिचय देते हुए उनकी विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- हिन्दी पूर्व की भाषाओं में संरक्षित साहित्य परम्परा का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- वैदिक भाषा की ध्वन्यात्मक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य का इतिहास काल विभाजन, सीमा निर्धारण और नामकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य शुक्ल जी के हिन्दी साहित्य के इतिहास के काल विभाजन का आधार कहाँ तक युक्तिसंगत है? तर्क सहित बताइये।
- प्रश्न- काल विभाजन की उपयोगिता पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- आदिकाल के साहित्यिक सामग्री का सर्वेक्षण करते हुए इस काल की सीमा निर्धारण एवं नामकरण सम्बन्धी समस्याओं का समाधान कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में सिद्ध एवं नाथ प्रवृत्तियों पूर्वापरिक्रम से तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- नाथ सम्प्रदाय के विकास एवं उसकी साहित्यिक देन पर एक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- जैन साहित्य के विकास एवं हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में उसकी देन पर एक समीक्षात्मक निबन्ध लिखिए।
- प्रश्न- सिद्ध साहित्य पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- आदिकालीन साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य में भक्ति के उद्भव एवं विकास के कारणों एवं परिस्थितियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की सांस्कृतिक चेतना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कृष्ण काव्य परम्परा के प्रमुख हस्ताक्षरों का अवदान पर एक लेख लिखिए।
- प्रश्न- रामभक्ति शाखा तथा कृष्णभक्ति शाखा का तुलनात्मक विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रमुख निर्गुण संत कवि और उनके अवदान विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सगुण भक्ति धारा से आप क्या समझते हैं? उसकी दो प्रमुख शाखाओं की पारस्परिक समानताओं-असमानताओं की उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल की प्रमुख प्रवृत्तियाँ या विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भक्तिकाल स्वर्णयुग है।' इस कथन की मीमांसा कीजिए।
- प्रश्न- उत्तर मध्यकाल (रीतिकाल ) की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, काल सीमा और नामकरण, दरबारी संस्कृति और लक्षण ग्रन्थों की परम्परा, रीति-कालीन साहित्य की विभिन्न धारायें, ( रीतिसिद्ध, रीतिमुक्त) प्रवृत्तियाँ और विशेषताएँ, रचनाकार और रचनाएँ रीति-कालीन गद्य साहित्य की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल की सामान्य प्रवृत्तियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी के रीतिमुक्त कवियों की विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- बिहारी रीतिसिद्ध क्यों कहे जाते हैं? तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- रीतिकाल को श्रृंगार काल क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- आधुनिक काल की सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, सन् 1857 ई. की राजक्रान्ति और पुनर्जागरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी नवजागरण की अवधारणा को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी साहित्य के आधुनिककाल का प्रारम्भ कहाँ से माना जाये और क्यों?
- प्रश्न- आधुनिक काल के नामकरण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतेन्दु युग के गद्य की विशेषताएँ निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- द्विवेदी युग प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- द्विवेदी युगीन कविता के चार प्रमुख प्रवृत्तियों का उल्लेख कीजिये। उत्तर- द्विवेदी युगीन कविता की चार प्रमुख प्रवृत्तियां निम्नलिखित हैं-
- प्रश्न- छायावादी काव्य के प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- छायावाद के दो कवियों का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- छायावादी कविता की पृष्ठभूमि का परिचय दीजिए।
- प्रश्न- उत्तर छायावादी काव्य की विविध प्रवृत्तियाँ बताइये। प्रगतिवाद, प्रयोगवाद, नयी कविता, नवगीत, समकालीन कविता, प्रमुख साहित्यकार, रचनाएँ और साहित्यिक विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोगवादी काव्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- प्रगतिवादी काव्य की सामान्य प्रवृत्तियों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- हिन्दी की नई कविता के स्वरूप की व्याख्या करते हुए उसकी प्रमुख प्रवृत्तिगत विशेषताओं का प्रकाशन कीजिए।
- प्रश्न- समकालीन हिन्दी कविता की प्रमुख प्रवृत्तियों पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- गीत साहित्य विधा का परिचय देते हुए हिन्दी में गीतों की साहित्यिक परम्परा का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- गीत विधा की विशेषताएँ बताते हुए साहित्य में प्रचलित गीतों वर्गीकरण कीजिए।
- प्रश्न- भक्तिकाल में गीत विधा के स्वरूप पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 13 विद्यापति (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- विद्यापति पदावली में चित्रित संयोग एवं वियोग चित्रण की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की पदावली के काव्य सौष्ठव का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति की सामाजिक चेतना पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति भोग के कवि हैं? क्यों?
- प्रश्न- विद्यापति की भाषा योजना पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- विद्यापति के बिम्ब-विधान की विलक्षणता का विवेचना कीजिए।
- अध्याय - 14 गोरखनाथ (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- गोरखनाथ का संक्षिप्त जीवन परिचय दीजिए।
- प्रश्न- गोरखनाथ की रचनाओं के आधार पर उनके हठयोग का विवेचन कीजिए।
- अध्याय - 15 अमीर खुसरो (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- अमीर खुसरो के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो की कविताओं में व्यक्त राष्ट्र-प्रेम की भावना लोक तत्व और काव्य सौष्ठव पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनके काव्य की विशेषताओं एवं पहेलियों का उदाहरण प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- अमीर खुसरो सूफी संत थे। इस आधार पर उनके व्यक्तित्व के विषय में आप क्या जानते हैं?
- प्रश्न- अमीर खुसरो के काल में भाषा का क्या स्वरूप था?
- अध्याय - 16 सूरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- सूरदास के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- "सूर का भ्रमरगीत काव्य शृंगार की प्रेरणा से लिखा गया है या भक्ति की प्रेरणा से" तर्कसंगत उत्तर दीजिए।
- प्रश्न- सूरदास के श्रृंगार रस पर प्रकाश डालिए?
- प्रश्न- सूरसागर का वात्सल्य रस हिन्दी साहित्य में बेजोड़ है। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- पुष्टिमार्ग के स्वरूप को सोदाहरण स्पष्ट कीजिए?
- प्रश्न- हिन्दी की भ्रमरगीत परम्परा में सूर का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 17 गोस्वामी तुलसीदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- तुलसीदास का जीवन परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसी की भाव एवं कलापक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकांड के आधार पर तुलसी की सामाजिक भावना के सम्बन्ध में अपने समीक्षात्मक विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- "अयोध्याकाण्ड में कवि ने व्यावहारिक रूप से दार्शनिक सिद्धान्तों का निरूपण किया है, इस कथन पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
- प्रश्न- अयोध्याकाण्ड के आधार पर तुलसी के भावपक्ष और कलापक्ष पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तुलसी समन्वयवादी कवि थे। इस कथन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- तुलसीदास की भक्ति भावना पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- राम का चरित्र ही तुलसी को लोकनायक बनाता है, क्यों?
- प्रश्न- 'अयोध्याकाण्ड' के वस्तु-विधान पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 18 कबीरदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कबीर का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- कबीर के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के काव्य में सामाजिक समरसता की समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- कबीर के समाज सुधारक रूप की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- कबीर की कविता में व्यक्त मानवीय संवेदनाओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- कबीर के व्यक्तित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 19 मलिक मोहम्मद जायसी (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मलिक मुहम्मद जायसी का जीवन-परिचय दीजिए एवं उनकी रचनाओं पर संक्षिप्त प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के काव्य की सामान्य विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के सौन्दर्य चित्रण पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- जायसी के रहस्यवाद का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- अध्याय - 20 केशवदास (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- केशव को हृदयहीन कवि क्यों कहा जाता है? सप्रभाव समझाइए।
- प्रश्न- 'केशव के संवाद-सौष्ठव हिन्दी साहित्य की अनुपम निधि हैं। सिद्ध कीजिए।
- प्रश्न- आचार्य केशवदास का संक्षेप में जीवन-परिचय दीजिए।
- प्रश्न- केशवदास के कृतित्व पर टिप्पणी कीजिए।
- अध्याय - 21 बिहारीलाल (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- बिहारी की नायिकाओं के रूप-सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी के काव्य की भाव एवं कला पक्षीय विशेषताओं की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- बिहारी की बहुज्ञता पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- बिहारी ने किस आधार पर अपनी कृति का नाम 'सतसई' रखा है?
- प्रश्न- बिहारी रीतिकाल की किस काव्य प्रवृत्ति के कवि हैं? उस प्रवृत्ति का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 22 घनानंद (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- घनानन्द का विरह वर्णन अनुभूतिपूर्ण हृदय की अभिव्यक्ति है।' सोदाहरण पुष्टि कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के वियोग वर्णन की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- घनानन्द का जीवन परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के शृंगार वर्णन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- घनानन्द के काव्य का परिचय दीजिए।
- अध्याय - 23 भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की शैलीगत विशेषताओं को निरूपित कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की भाव-पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की भाषागत विशेषताओं का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- भारतेन्दु जी के काव्य की कला पक्षीय विशेषताओं का निरूपण कीजिए। उत्तर - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के काव्य की कलापक्षीय कला विशेषताएँ निम्न हैं-
- अध्याय - 24 जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सिद्ध कीजिए "प्रसाद का प्रकृति-चित्रण बड़ा सजीव एवं अनूठा है।"
- प्रश्न- जयशंकर प्रसाद सांस्कृतिक बोध के अद्वितीय कवि हैं। कामायनी के संदर्भ में उक्त कथन पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 25 सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- 'निराला' छायावाद के प्रमुख कवि हैं। स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- निराला ने छन्दों के क्षेत्र में नवीन प्रयोग करके भविष्य की कविता की प्रस्तावना लिख दी थी। सोदाहरण स्पष्ट कीजिए।
- अध्याय - 26 सुमित्रानन्दन पन्त (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- पंत प्रकृति के सुकुमार कवि हैं। व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- 'पन्त' और 'प्रसाद' के प्रकृति वर्णन की विशेषताओं की तुलनात्मक समीक्षा कीजिए?
- प्रश्न- प्रगतिवाद और पन्त का काव्य पर अपने गम्भीर विचार 200 शब्दों में लिखिए।
- प्रश्न- पंत के गीतों में रागात्मकता अधिक है। अपनी सहमति स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- पन्त के प्रकृति-वर्णन के कल्पना का अधिक्य हो इस उक्ति पर अपने विचार लिखिए।
- अध्याय - 27 महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- महादेवी वर्मा के व्यक्तित्व एवं कृतित्व का उल्लेख करते हुए उनके काव्य की विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- "महादेवी जी आधुनिक युग की कवियत्री हैं।' इस कथन की सार्थकता प्रमाणित कीजिए।
- प्रश्न- महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय संक्षेप में दीजिए।
- प्रश्न- महादेवी जी को आधुनिक मीरा क्यों कहा जाता है?
- प्रश्न- महादेवी वर्मा की रहस्य साधना पर विचार कीजिए।
- अध्याय - 28 सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन 'अज्ञेय' (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- 'अज्ञेय' की कविता में भाव पक्ष और कला पक्ष दोनों समृद्ध हैं। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- 'अज्ञेय नयी कविता के प्रमुख कवि हैं' स्थापित कीजिए।
- प्रश्न- साठोत्तरी कविता में अज्ञेय का स्थान निर्धारित कीजिए।
- अध्याय - 29 गजानन माधव मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- मुक्तिबोध की कविता की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
- प्रश्न- मुक्तिबोध मनुष्य के विक्षोभ और विद्रोह के कवि हैं। इस कथन की सार्थकता सिद्ध कीजिए।
- अध्याय - 30 नागार्जुन (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- नागार्जुन की काव्य प्रवृत्तियों का विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- नागार्जुन के काव्य के सामाजिक यथार्थ के चित्रण पर एक संक्षिप्त लेख लिखिए।
- प्रश्न- अकाल और उसके बाद कविता का प्रतिपाद्य लिखिए।
- अध्याय - 31 सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' (व्याख्या भाग )
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'धूमिल की किन्हीं दो कविताओं के संदर्भ में टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सुदामा पाण्डेय 'धूमिल' के संघर्षपूर्ण साहित्यिक व्यक्तित्व की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सुदामा प्रसाद पाण्डेय 'धूमिल' का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
- प्रश्न- धूमिल की रचनाओं के नाम बताइये।
- अध्याय - 32 भवानी प्रसाद मिश्र (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र के काव्य की विशेषताओं का निरूपण कीजिए।
- प्रश्न- भवानी प्रसाद मिश्र की कविता 'गीत फरोश' में निहित व्यंग्य पर प्रकाश डालिए।
- अध्याय - 33 गोपालदास नीरज (व्याख्या भाग)
- प्रश्न- कवि गोपालदास 'नीरज' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- 'तिमिर का छोर' का प्रतिपाद्य स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- 'मैं तूफानों में चलने का आदी हूँ' कविता की मूल संवेदना स्पष्ट कीजिए।